Published in the Sunday Navbharat Times on 26 January 2025
मुझे ‘मिट्टी’ नामक एक विशेष इत्र से प्यार हो गया। जैसे ही मैंने बोतल खोली, मैं गर्मियों के अंत और मानसून की शुरुआत में पहुँच गयी...
‘और इस तरह आप इत्र लगाते हैं’। फुकरान ने सबसे सुरीली आवाज में हमें समझाया, जैसे उसने परफ्यूम की एक छोटी सी थपकी ली, उसे अपने हाथों में लगा कर फिर धीरे से उसने उसे अपनी शर्ट पर लगाया। पहले छाती पर, फिर कंधों पर और आख़िर में अपनी बाहों पर। उसने मुस्कुराते हुए कहा, ‘इत्तर परफ्यूम की तुलना में अधिक कॉन्सनट्रेटेड है, और इसे पोशाक पर लगाया जाना चाहिए, त्वचा पर नहीं’। वह बोल रहा था, उसके शब्दों में एक जादुई लय होती थी, जिसमें हिंदी, अरबी और उर्दू का मिश्रण इतना मधुर और काव्यात्मक होता था कि ऐसे लगता था मानो उसके मुँह से शहद टपक रहा हो। मैं वहां बैठकर हमेशा उसकी बात सुनती रहूँ ऐसे मुझे लगने लगा था।
मुझे ‘मिट्टी’ नामक एक विशेष इत्र से प्यार हो गया। जैसे ही मैंने बोतल खोली, मैं गर्मियों के अंत और मानसून की शुरुआत में पहुँच गयी, मानो अपनी पहली बारिश की बूंदों का स्वागत कर रही सूखी धरती का सार अजीब ढंग से उस छोटी शीशी में बंद हो गया हो। फुकरान बीच में ही रुक गया और आगे बढ़ने से उसने इनकार कर दिया, जब तक कि हम उसकी छोटी सी दुकान के अंदर नहीं बैठ जाते। अपने मेहमानों के रूप में, वह अपने इत्र का प्रदर्शन करते समय हमें खड़े होने की अनुमति नहीं देना चाहता था। आख़िरकार मुझे प्रसिद्ध लखनवी तहज़ीब-संस्कृति और शालीनता समझ में आई जिसके बारे में मैंने बहुत कुछ सुना था।
शब्द ‘तहज़ीब’, जिसका अरबी भाषा से अनुवाद किया गया है, उसका अर्थ शिष्टाचार या आचरण है। लेकिन लखनऊ में, इस अर्थ में और भी बहुत कुछ शामिल है। तहज़ीब जीने का एक तरीका है - यह किसी के भाषण, साहित्य, मनोरंजन, पोशाक, कला, वास्तुकला और निश्चित रूप से, इस शहर के समृद्ध व्यंजनों में प्रतिबिंबित होता है।
लखनऊ में ट्रॅवल करना, कई सालों से मेरी बकेट लिस्ट में था, फिर भी किसी तरह मैं ट्रॅवल कर ही नहीं सकीं। कुछ महीनोफ्ल पहले, दोस्तों के साथ फूड टूर का विचार लंबे समय से चले आ रहे मे सपने को हकीकत में बदलने का सही बहाना बन गया।
कहते हैं कि ‘लखनऊ का रास्ता पेट से होकर जाता है‘। लेकिन इस शहर में प्रसिद्ध खाने के अलावा और भी बहुत कुछ है। लखनऊ का केंद्रबिंदु निस्संदेह वास्तुशिल्प चमत्कारों की तिकड़ी है - बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा और रूमी दरवाजा। अब संयोग से, यह प्री-वेडिंग फोटोशूट के लिए एक पसंदीदा स्थान है, जैसे कि हमने वहॉं ट्रॅवल के दौरान देखा था। 'नवाबों की भूमि' के रूप में पहचाने जाने वाले लखनऊ की पहचान उसके शासकों की विरासत में गहराई से जुडी हुई है। ‘नवाब’ शीर्षक की उत्पत्ति फ़ारसी वाक्यांश ‘नाइब‘ या ‘नून-वाब’ से हुई है, जिसका अर्थ है ‘रोटी देने वाला’ या ‘जिंदगी का रखवाला’। यह राज्यपाल के रूप में अपने लोगों को खाना देने और उनकी रक्षा करने की नवाबों की ज़िम्मेदारी को दर्शाता है। समय के साथ, यह उपाधि राजसी भव्यता के रूप में विकसित हुई, जो शक्ति, शिष्टता और सांस्कृतिक संरक्षण का प्रतीक है।
बड़ा इमामबाड़ा और रूमी दरवाजे का निर्माण, 1784 में नवाब 'आसफ-उद-दौला' के तहत अकाल राहत उपाय के रूप में किया गया था। वास्तुकार 'किफायतुल्ला' द्वारा डिजाइन किया गया, 164 फीट लंबा और 52 फीट चौड़ा इतना बड़ा इमामबाड़ा पूरी तरह से र्इंट और उच्च गुणवत्ता वाले चूना पत्थर से बनाया गया है। इसकी धनुषाकार छत सचमुच एक चमत्कार है, जो दुनिया में अपनी तरह की सबसे बड़ी छत है, जो एक भी बीम के बिना बनाई गई है। 200 से अधिक सालों के बाद यह संरचना अभी भी अपनी मूल गरिमा और भव्यता को बरकरार रखते हुए खड़ी है। बड़ा इमामबाड़ा के सबसे आकर्षक पहलुओं में से एक इसका भूलभुलैया है, जो संकीर्ण मार्गों, जटिल बालकनियों और 489 समान दरवाजों से बना है, जो आगंतुकों को पूरी तरह से गुमराह कराने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इमामबाड़ा पवित्रता और पूजा का स्थान हैं और दुर्भाग्य से, उन सभी बाड़ों ने हाल ही में गलत कारणों से सुर्खियां बटोरीं। एक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर व्यक्ति द्वारा यहॉं एक नृत्य वीडियो फिल्माए जाने के बाद, अधिकारियों ने इस स्थान की गरिमा बनाए रखने के लिए परिसर में वीडियो रिकॉर्डिंग पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया। इसने मुझे जहॉं हम जाते हैं उन स्थानों की पवित्रता, सम्मान और स्वच्छता बनाए रखने के लिए एक पर्यटक के रूप में हमारी जिम्मेदारी के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया।
हम छत्तर मंजिल, ‘अम्ब्रेला पैलेस’ में भी रुके, जो कभी नवाबों का खूबसूरत निवास स्थान था। हालाँकि अब यह खंडहर में तब्दील हुआ है, फिर भी इसकी भव्यता की गूँज चारों अोर सुनाई देती है, भले ही यह नाजुक अवस्था में है और हम इसकी खोज करते समय बहुतही सावधानी से वहाँ चलते हैं।
लखनऊ का भोजन प्रसिद्ध है और यह अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप है। कबाब और बिरयानी से लेकर हमें भी काली गाजर का हलवा और 'मक्खन मलाई', जिसे उत्तर भारत के अन्य स्थानों में 'मलाइयों' भी कहा जाता है जैसे सर्दियों के व्यंजनों का आनंद लेने का मौका मिला। यहाँ के स्वादों की विविधता और समृद्धि अद्वितीय है। मांसाहारी व्यंजनों ने हमारा दिल जीत लिया, लेकिन हर किसी केे लिए यहाँ बहुत सारे शाकाहारी विकल्प भी मौजूद हैं। हमने तीखे और मसालेदार स्वादों से भरपूर प्रसिद्ध चाट का स्वाद चखा, और सदियों पुराने सीपीज् से तैयार भोजन का आनंद लिया जो पाक कला की उत्कृष्ट कृतियों जैसा लगता है।
एक मुख्य आकर्षण ‘नैमत खाना‘ में घर पर पकाए गए भोजन का अनुभव था, जहॉं सरल लेकिन स्वादिष्ट व्यंजनों ने हमें अचंबित कर दिया। आखरी दिन, हमने अजरक में शानदार ‘साराका होटल‘ में भोजन किया, जहॉं हमने 12 घंटे की धीमी गति से पकाए गए ‘रान‘ का स्वाद लिया।
निःसंदेह, सबसे अच्छी खोजें शहर की गलियों में छिपी हुई थीं - छोटे, वर्णनातीत भोजनालय जो पहली नज़र में डराने वाले लगते थे लेकिन वहाँ मुझे अब तक का सबसे अविश्वसनीय भोजन मिला है। एक स्थानीय गाइड के साथ, हमने इन छिपे हुए रत्नों का पता लगाया और उनकी उत्पत्ति की कई पीढ़ियों पुरानी दिलचस्प कहानियाँ सुनीं।
और फिर प्रसिद्ध टुंडे गलावटी कबाब थे - एक ऐसा व्यंजन जिसका स्वाद उसके इतिहास जितनाही समृद्ध है। किंवदंती है कि ये मॅुंह में घुल जाने वाले कबाब एक उम्रदराज़ नवाब के लिए बनाए गए थे, जिनके दांत टूट गए थे लेकिन फिर भी वे कबाब के स्वाद के लिए तरस रहे थे। समय के साथ चला आ रहा यह आविष्कारी नुस्खा आज भी दुनिया भर के भोजन प्रेमियों को प्रसन्न करता है।
हालाँकि, सब कुछ हिट नहीं था। यहॉं फिल्म दबंग की शूटिंग के बाद लोकप्रिय हुई ‘दबंग चाय’ मुझे ज़्यादा पसंदा नहीं आयी - वह बहुत मलाईदार थी। मैंने कश्मीरी चाय न पीते हुए गलावटी कबाब खाना शुरू कर दिया!
हम लखनऊ की टूर को वहाँ की सबसे प्रतिष्ठित चिकनकारी एम्ब्रॉयडरी के बिना पूरी नहीं कर सकते। जो एक त्वरित खरीदारी का उद्देश्य था वह दो घंटों में तब्दील हो गया, जिसमें हमा सूटकेस जटिल एम्ब्रॉयडरी वाले परिधानों से भर गए। होलसेल मार्केट्स से लेकर बुटीक डिज़ाइनर स्टोर्स तक, लखनऊ ने हमा सामने अनगिनत विकल्प पेश किए।
चिकनकारी कि डिज़ार्इन्स अक्सर लखनऊ की वास्तुकला का प्रतिबिंब होती हैं, जिसमें मछली का प्रतीक भी शामिल है - जो नवाबी कला और संस्कृति का रूपांकन है। फ़ारसी और इस्लामी परंपराओं में, मछली (माही) गुडलक, फर्टिलिटी और समृध्दी का प्रतीक है। अवध के नवाबों ने, जो फ़ारसी मूल के थे, इसे अपने शासन और सौंदर्यशास्त्र के केंद्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया।
मछली को प्रवेश द्वारों, शाही बॅनरों और ऐतिहासिक संरचनाओं के अग्रभागों पर पाया जा सकता है। अक्सर माही-मारातीब के हिस्से के रूप में, जो नवाबों द्वारा सैन्य कमांडरों और अधिकारियों को दिया जाने वाला सम्मान और रँक का एक आदेश है। समृद्धि और सुरक्षा का प्रतिनिधित्व करते हुए, यह रूपांकन लखनऊ की सांस्कृतिक और कलात्मक पहचान में बुना गया है। यदि आप भी लखनऊ जाने के लिए उत्साहित हैं, तो वीणा वर्ल्ड की लखनऊ, अयोध्या और वाराणसी की टूर में शामिल हो जाइए, जो संस्कृतियों का एक सुंदर मिश्रण है, जो भारत का सार है।
अपना लखनऊ हॉलिडे समाप्त करते समय मैं इस शहर के अद्वितीय आकर्षण की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकी। यहॉं की हवा इतिहास से सराबोर है, और यहां के लोग अपनी गर्मजोशी के साथ एक ऐसी काव्यात्मक और शिष्ट भाषा बोलते हैं जो हमें भी प्रभावित कर गई। हॉलिडे के अंत तक, हम भी शुद्ध हिंदी बोलने लगे और यह वादा किया कि लखनऊ की तहज़ीब को अपने साथ घर ले जाएंगे। यहां का भव्य इतिहास हो, दिल छू लेने वाले लोग हों, या हर पल की खूबसूरती, ऐसा लगता है जैसे किसी खूबसूरती से लिखी कहानी में कदम रख रहे हों। चाहे इत्र की खुशबू हो, कबाब का स्वाद हो, या इसकी भव्य वास्तुकला में गूंजता इतिहास, लखनऊ का असर आपके साथ लंबे समय तक रहता है।
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