Published in the Sunday Navbharat Times on 06 October, 2024
...अपने स़फर में अलग-अलग दिलचस्पियां रखने वालोफ्ल को खुश करना
मुश्किल होता है। इसलिए हमने इसकी प्लॅनिंग एक्सपर्ट्स पर छोड़ दी...
मैं महेश्वर में नर्मदा घाट पर स्थित देवी अहिल्या बाई होलकर की भव्य प्रतिमा के सामने खड़ी थी। शिलालेख पर लिखा था, ‘1727 से 1795‘। मेरे श्रद्धा और सम्मान से भरा मेरा मन इस अद्भुत देवी के सामने झुक सा गया, जिसने अपने राज्य के लिए बहुत कुछ किया था। एक चतुर एवं दूरदर्शी शासिका के रूप में उन्होंने इंदौर की वास्तुकला को आकार दिया, अनेक सड़कें बनवाईं और नर्मदा नदी के किनारे शानदार घाटों का निर्माण किया। अगर हम आज के स्टैंडर्ड्स की बात करें, तो उनके हिसाब से भी यह एक अद्भुत उपलब्धि है। आश्चर्य होता है कि 18वीं सदी में ये सब संभव बनाया स्नेह, प्रेरणा और दिव्यता की साक्षात मूर्ति माँ अहिल्या ने।
इंदौर तथा महेश्वर हमारे समक्ष होलकर राजवंश के गौरवशाली अतीत की एक आकर्षक झलक प्रस्तुत करते हैं। ये एक ऐसा मराठा राजवंश था, जिसने 1700 और 1800 के दशक में मध्य भारत के अधिकांश हिस्सों पर शासन किया था। इंदौर एक ऐसी जगह है, जिसे आप अपना बेस कैंप बनाकर उज्जैन, मांडू, ओंकारेश्वर और महेश्वर जैसी आसपास की बेहतरीन जगहों को बड़ी आसानी से देख सकते हैं। केवल इतना ही नहीं, ये ़फैमिली ़फूड ट्रेल के लिए भी एक शानदार जगह है और इंदौर की इस खासियत को हमने जल्द ही बखूबी जान और मान लिया।
पिछले वीकेंड पर हम चारों, यानी वीणा, सुधीर, नील और मैं एक छोटी सी छुट्टी लेकर इंदौर और महेश्वर घूमने पहुंचे। हमारे साथ नील की वाइ़फ हेता, उनकी पाँच महीने की प्यारी बेटी राया, मेरी बेटी सारा और मेरी माँ भी थीं। जब आप एक मल्टीजनरेशन फैमिली के साथ स़फर पर निकलते हैं, तो आपको कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि अपने स़फर में अलग-अलग दिलचस्पियां रखने वाले लोगों को खुश करना मुश्किल होता है। इसलिए हमने इसकी प्लॅनिंग का काम एक्सपर्ट्स पर छोड़ दिया। हमारे कस्टमाइज्ड हॉलिडे डिवीज़न ने एक ऐसा हॉलिडे कार्यक्रम बनाया, जिसमें सभी के लिए कुछ ना कुछ एक्टिविटीज़ शामिल थीं, जिसे मैं अक्सर ‘वी टाइम‘ और ‘मी टाइम‘ कहती हूँ।
हमारी छुट्टी की शुरुआत नर्मदा नदी पर नाव की एक शांत सवारी से हुई। हमने नर्मदा नदी के बीच एक द्वीप पर स्थित ‘बाणेश्वर मंदिर’ को देखा, जो स्थानीय मान्यताओं के अनुसार ‘ब्रह्मांड का केंद्र‘ है। नाव से उतरने के बाद हमने मंदिर के प्रांगण में पारंपरिक प्रदक्षिणा (परिक्रमा) की और ऐसा करते हुए हम वहाँ के शाही तटों की प्रशंसा करने से खुद को रोक नहीं पाए। यह मंदिर एक अत्यंत शांत स्थल पर मौजूद है और नदी के बीच से नर्मदा तट पर स्थित घाट और किले के दृष्य और भी शानदार दिखाई देते हैं। यहाँ के घाटों पर हर शाम माँ नर्मदा की आरती होती है, जो नर्मदा में रोशनी बिखेरने वाला एक आध्यात्मिक कार्यक्रम है।
अगली सुबह, वीणा, सुधीर और मेरी माँ 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ‘ओंकारेश्वर’ की ओर चल पड़े, जबकि नील, हेता, नन्हीं राया और मैं महेश्वर में ही रुक गए। हमने महेश्वर के सुप्रसिद्ध घाटों को फिर से देखने का फैसला किया। यहाँ नदी की ओर जाने वाली प्राचीन सीढ़ियों में कुछ तो ऐसा अद्भुत है, जो मन को बेहद सुकून देता है।
महेश्वर में नर्मदा के किनारे स्थित मंदिर को उसके पत्थरों पर की गई जटिल नक्काशी के लिए जाना जाता है और इसे प्री-वेडिंग फोटो शूट के लिए बैकड्रॉप के रूप में बेहद पसंद किया जाता है। वीणा वर्ल्ड में हमारे पास अक्सर दुबई या पॅरिस जैसी एक्ज़ॉटिक जगहों पर फोटो शूट के लिए रिक्वेस्ट्स आती हैं, लेकिन जब मैं महेश्वर में उस जगह पहुँची, तो उस समय मैं वहाँ की वास्तुकला की ताऱीफ करते हुए यही सोच रही थी, कि हमारे भारत में ही कितने खूबसूरत फोटो स्पॉट मौजूद हैं। एक लोकल ़फोटोग्ऱाफर ने हमसे तस्वीरें खिंचवाने का अनुरोध किया। वैसे तो मैं इसके लिए इंकार करने वाली थी, पर नील ने कहा कि हमें इसे ट्राय करना चाहिए, क्योंकि किसी भी जगह के स्थानीय लोग हमेशा वहाँ की सबसे अच्छी जगहों के बारे में बखूबी जानते हैं। नील ने सच ही कहा था! उस ़फोटोग्ऱाफर ने हमारी जो तस्वीरें लीं, वो बेहद शानदार थीं और ये हमारे लिए एक मज़ेदार और यादगार अनुभव बन गया।
उसी दिन, बाद में हमने दूसरे लोगों से मिलने के बाद महेश्वर के प्रसिद्ध हैंडलूम्स को देखा। महेश्वर अपनी माहेश्वरी साड़ियों और कपड़ों के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि इनकी नाज़ुक बुनाई और इनके जीवंत पैटर्न देखते ही बनते हैं। ‘रेवा’ में, जो एक बुनाई सहकारी संस्था है, हमने अपनी आँखों से देखा कि कैसे स्थानीय कारीगर सदियों पुरानी परंपराओं को आज भी जीवित रखे हुए हैं। धागों को डाई करने से लेकर उन्हें करघों में लगाने तक की जटिल प्रक्रिया को देखकर हमें हर उस कपड़े में लगने वाली कड़ी मेहनत का एहसास हुआ, जो हम यूँ ही पहन लेते हैं। अब हम यहाँ से कुछ साड़ियाँ और दुपट्टे खरीदे बिना कैसे जा सकते थे। खास बात ये थी कि बुने हुए हर कपड़े पर उस कारीगर की पहचान बताने वाला टैग लगा होता था, जिसने उसे बुना है।
अब हम इंदौर पहुँचे। सबसे पहले हमने खाने की बेहतरीन खुशबू से लबालब ‘छप्पन दुकान’ का रुख किया। ये इंदौर की एक ऐसी मशहूर जगह है, जहाँ एक कतार में 56 दुकानें मौजूद हैं और इसीलिए इस स्ट्रीट ़फूड हब को ये नाम मिला है। जब हम यहाँ पहुँचे तो बारिश होने लगी, पर इसके बावजूद हमारे उत्साह में कोई कमी नहीं आई। यहाँ सबसे पहले हमने कचौड़ियाँ और पेटीस लिए, जो एक खास तरह की तीखी चटनी से सराबोर थे। इसके बाद हमने यहाँ का मशहूर जॉनी हॉट डॉग खाया, जिसे नॉन-वेज खाने वाले लोकल लोग बेहद पसंद करते हैं। यहाँ दाबेली से लेकर कॉर्न चाट तक सब कुछ मिलता है, और हाँ, कुल्हड़ पिज़्ज़ा भी, जो मिट्टी के प्याले में परोसी जाने वाली एक अनोखी डिश है और इसके हर बाइट में पिज़्ज़ा के सभी फ़्लेवर शामिल होते हैं। यहाँ हर किसी के लिए कुछ न कुछ था। जब हम यहाँ से निकले तो हमारा पेट पूरी तरह से भर चुका था और हमें यहाँ जो संतुष्टि मिली, उसे बयान नहीं किया जा सकता है।
इसके बाद हम लालबाग पॅलेस पहुँचे। 19वीं सदी के अंत में और 20वीं सदी की शुरुआत में होलकर राजवंश द्वारा निर्मित लालबाग पॅलेस भारत के सबसे भव्य राजसी निवासों में से एक है। इस महल की डिज़ाइन पर यूरोपीयन आर्किटैक्चर का काफी प्रभाव है, जिसमें इसके सजीले इंटीरियर, मार्बल के खंभे, झूमर और भित्तिचित्रों से सजी छतें शामिल हैं। यहाँ विशाल बगीचे भी मौजूद हैं, जो कभी खूबसूरत लाल गुलाबों से भरे रहा करते थे और इन्हीं के नाम पर इस महल का नाम ‘लालबाग’ रखा गया था। इस महल की एक अनूठी खासियत है यहाँ के बॉलरूम का फर्श, जिसके नीचे लोहे के स्प्रिंग लगाए गए हैं, जिससे इस पर डांस करने वालों को अपने हर स्टेप में ‘स्प्रिंग‘ जैसा ़फील मिले। यह महल होलकरों की शाही जीवनशैली को दर्शाता है और इसमें उनके भव्य अतीत की जीवंत झलक मिलती है।
इसके बाद हमारा अगला पड़ाव था राजवाड़ा पॅलेस, जो इंदौर के बीचों-बीच स्थित एक प्रतिष्ठित सात मंजिला इमारत है। इसमें मराठा, मुगल और फ्रेंच स्थापत्य शैली का अनूठा मिश्रण है। 200 साल पहले होलकर राजवंश द्वारा निर्मित यह महल उनका शाही निवास और प्रशासनिक मुख्यालय हुआ करता था। एक बार राजवाड़ा भीषण आग की चपेट में आ गया था और उससे इसे जो नुकसान हुआ, उसके कारण इसका कई बार जीर्णोद्धार हुआ है। लेकिन राजवाड़ा आज भी इंदौर के समृद्ध इतिहास का प्रतीक बना शान से खड़ा है। इसी के पास आपको होलकर छतरियाँ (स्मारक) भी देखने को मिल जाएँगी, जो होलकर राजवंश के शासकों के स्मारक हैं। राजवाड़ा इंदौर में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व का केंद्र बिंदु बना हुआ है।
शाम को हम सराफा बाज़ार की ओर चल पड़े, जो यहाँ का मशहूर ज्वेलरी बाज़ार है और ये अंधेरा होने के बाद बेहतरीन रौनक वाला एक शानदार स्ट्रीट ़फूड मार्केट बन जाता है। इस जगह को यहाँ के ज्वेलरों द्वारा बड़ी चतुराई से बनाया गया है, जिससे यह सुनिश्चित हो कि ये जगह रात में भी चहल-पहल भरी रहे और ये स्थान सुरक्षित भी रहे। इस स्ट्रीट ़फूड मार्केट में हमारा पहला पड़ाव था जोशी वड़ावाला, जहाँ मैंने उस शाम आखिरी डिश का मज़ा लेने का ़फैसला किया। सऱाफा बाज़ार खाने के शौकीनों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है, जहाँ गराडू चाट, भुट्टे का कीस, तंदूर के व्यंजन, मालपुआ और रबड़ी के साथ जलेबी जैसे व्यंजन खूब मिलते हैं। वहाँ मेरा पर्सनल ़फेवरेट था रिफ्रेशिंग जामुन शॉट्स, जिसमें खट्टे जामुनों के ज्यूस से भरे शॉट ग्लास होते हैं। सराफा बाज़ार रात 10 बजे शुरू हो जाता है और सुबह 3 बजे तक चलता है और इसी वजह से यह लेट नाइट ़फीस्ट के लिए एकदम सही जगह है।
इस तरह की छुट्टियों में हमें अपने बिज़ी शेड्यूल को कुछ देर भूलकर एक-दूसरे के साथ अनमोल समय बिताने का सुनहरा मौका मिलता है। हम सभी ने बारी-बारी से बच्चे की देखभाल की और सभी लोगों ने राया को जो कहानियाँ और गाने सुनाए, वो सब उसे बेहद पसंद आए। अगर आप किसी छोटे बच्चे के साथ छुट्टी मनाने के बारे में सोच रहे हैं, तो इसमें बिलकुल संकोच न करें - यह जितना लगता है उससे कहीं ज़्यादा आसान होता है, और इस तरह के हॉलिडे पर हमें जिस पारिवारिक जुड़ाव की अनुभूति होती है, वो अमूल्य है।
इंदौर ने वाकई हमारा दिल जीत लिया। भारत के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में जाना जाने वाला इंदौर हमारी दिनचर्या से एकदम अलग था। चार दिनों के शानदार स़फर के बाद हम एयरपोर्ट की ओर चल पड़े और सारा ने यह सुनिश्चित किया कि सभी ने अपनी डिजीयात्रा संबंधी औपचारिकताएँ पूरी कर ली हैं। जब उसने अपनी दादी को भारत के नए डिजिटल सिस्टम्स से मिलने वाली सुविधाओं के बारे में बताया, तो मुझे लगा कि ये भारतीय पारिवारिक छुट्टियों की एक आदर्श तस्वीर है। इसमें टेक-सॅवी यूथ और जीवनभर का अनुभव और ज्ञान रखने वाले बुजुर्ग एक दूसरे से सीख रहे थे और एक दूसरे का ख्याल भी रख रहे थे।
तो सोच क्या रहे हैं? अपना बॅग पॅक करें, अपने परिवार को इकट्ठा करें और अपने अगले एडवेंचर पर निकल पड़ें - एक यादगार ़फैमिली हॉलिडे के लिए इससे बेहतर समय और कोई नहीं है!
सुनिला पाटील, वीणा पाटील और नील पाटील इनके हर हफ्ते प्रकाशित होनेवाले लेख वीणा वर्ल्ड की वेबसाईट www.veenaworld.com पर पढ़ने के लिए उपलब्ध हैं।
Post your Comment
Please let us know your thoughts on this story by leaving a comment.