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तू बन जा गली बनारस की...

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Published in the Saturday Navbharat Times on 17 February, 2024

मुझसे अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि धार्मिक न होते हुए भी क्या मुझे वाराणसी जाना चाहिए? मेरा वहाँ क्या काम है?

वो चीज़ कुछ बादलों की तरह लगती थी; सफ़ेद, मुलायम और झागभरी। जैसे ही मैंने इस बादल का एक टुकड़ा चम्मच से काटकर अपने मुँह में रखा, तो इसने जैसे मेरे मुंह में रस की बारिश ही कर दी और मेरा मुँह स्वाद से लबालब भर गया। इसका मधुरम स्वाद मन को भीतर तक सुकून और संतुष्टि दे गया और मेरी रसेंद्रियाँ जागृत हो गई। जब हम सपनीले सफेद झाग और केसर के तंतुओं से सजे मिट्टी के कुल्हड़ों की कतार वाले स्टालों से गुजरते हुए शहर के चौराहे की ओर बढ़े, तो हवा ठंडी थी, हालाँकि सूरज चमक रहा था। मुझे बस पल भर ठहरकर इस अद्भुत व्यंजन का स्वाद लेना था। हमारे गाइड ने हमें बताया कि इसे मलइयो कहा जाता है। मेरे मन में ख्याल आया कि भगवान शिव की इस पावन नगरी में यह ज़रूर भगवान का भी प्रिय व्यंजन होगा। वाराणसी की हलचल भरी गलियों और सुदूर तक फैले जीवंत घाटों के बीच-बीच में दिखने वाला मलइयो एक पाक-कला संबंधी मनमोहक आनंद है, जो इस शहर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। दूध, चीनी और केसर से बने इस अलौकिक मिष्ठान्न को खूब फेंटा जाता है, जिससे ये अपनी हल्की-फुल्की और वायुमय सुसंगति हासिल करता है, ताकि यह मुँह में जाते ही पिघल जाए। पारंपरिक रूप से ठंडभरे सर्दियों के महीनों के दौरान तैयार किया जाने वाले मलइयो के लिए महीन पाककला, कुशल तकनीक और बहुत धैर्य की ज़रूरत होती है। इसका अनूठा मलाईनुमा गाढ़ापन इसे धीमी गति से पकाने और लगातार चलाते रहने से ही आता है। और जब इसमें केसर डलती है तो इसकी बेहतरीन भीनी-भीनी खुशबू और सुनहली आभा मन को मोह लेती है और इसके स्वाद का तो कहना ही क्या! मलइयो केवल एक मिठाई भर नहीं है, बल्कि ये वाराणसी की पाक-कला की प्राचीन और समृद्ध विरासत का प्रतिबिंब भी है। ये इस शहर के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परिवेश के बीच अपना जादुई स्वाद लेने के लिए सभी को अपनी ओर खींचता है।

मुझे कुछ ही बार वाराणसी जाने का सौभाग्य मिला है। हम सभी वाराणसी से पवित्र भूमि, मंदिरों की भूमि, सर्वश्रेष्ठ तीर्थ स्थल के रूप में परिचित हैं और कहा जाता है कि वाराणसी में रहना ही निर्वाण या मोक्ष प्राप्ति के लिए पर्याप्त है! वाराणसी, या बनारस, (जिसे काशी भी कहा जाता है) दुनिया के प्राचीनतम अस्तित्वमान नगरों में से एक है। अंग्रेजी लेखक और साहित्यकार मार्क ट्वेन ने बनारस के आख्यान और पवित्रता से मंत्रमुग्ध होकर एक बार लिखा थाः बनारस इतिहास से भी पुराना है, परंपरा से भी पुराना है, किंवदंतियों से भी पुराना है और इन सभी को मिलाकर एक साथ रखने पर भी इनसे दोगुना पुराना लगता है।’ और इन सबके बावजूद आज वाराणसी नवनिर्मित काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की बदौलत बिल्कुल नया सा दिखता है, जिसने इस शहर को बदलकर रख दिया है और अब काशी विश्वनाथ मंदिर को गंगा नदी के घाटों से जोड़ता है। मेरा यह कॉरिडोर बनने से पहले काशी जाना हुआ था और मैं दोबारा वापस जाकर इसका अनुभव लेने से खुद को रोक नहीं सकी।

मुझसे अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि धार्मिक न होते हुए भी क्या मुझे वाराणसी जाना चाहिए? मेरा वहाँ क्या काम है? मेरे लिए वाराणसी सर्वप्रथम आध्यात्मिक अन्वेषण का केंद्र है। बेशक, अपनी पहली यात्रा में, मैं २००० से अधिक मंदिरों में से कुछ मुख्य मंदिरों को निहारना चाहती थी, जिनके लिए काशी प्रसिद्ध है, लेकिन जो बात सबसे खास है वह यहाँ की आध्यात्मिकता है। यह लगभग इस तरह है कि आप इसे यहाँ की हवा में महसूस कर सकते हैं। मैंने जब-जब भी वाराणसी की यात्रा की, हर बार मुझे ये अनुभूति हुई। आख़िरकार, यहाँ इतने सारे मंदिरों के बावजूद, सबसे प्रसिद्ध वो आरती है, जिसमें हम प्रकृति माँ की पूजा करते हैं! गंगा आरती केवल एक भव्य दर्शनीय प्रदर्शन ही नहीं बल्कि एक गहन आध्यात्मिक समारोह है। यह पवित्र नदी गंगा के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति है, क्योंकि यह माना जाता है कि गंगा हमारे पापों को धोती है और हमें आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करती है। यह एक शानदार दर्शनीय कार्यक्रम है और नाव से दशाश्वमेध घाट पर आरती की भव्यता को देखना सचमुच में एक अनूठा अनुभव है। जब मैंने सर्वमंगल की कामना करते हुए अपना दीप जलाकर पानी में तिरोहित किया, तो मैंने देखा कि गंगा आरती के दीपदान को लेकर पुजारी कितने ध्यानमग्न थे। उनका समर्पण, मंत्र जाप अद्वितीय आध्यात्मिकता की आभा पैदा करता था।

अगली सुबह मुझे बस घाटों पर वापस जाना था और पिछली शाम को गंगा में नाव की सवारी से मेरा मन भरा नहीं था और जल्द ही मैंने खुद को फिर से नाव पर पाया। मैं सूर्योदय से थोड़ा पहले तैयार होकर गंगा किनारे सूर्योदय के सबसे शानदार दृष्य को देखने के लिए निकल पड़ी। उस समय सूरज की किरणों ने आकाश और नदी को गुलाबी और नारंगी रंग में रंग दिया था। प्रवासी पक्षी हमारी नाव के ऊपर मंडरा रहे थे। सुबह प्रशांत और शांतिपूर्ण थी जिसकी प्रशंसा के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। वीणा वर्ल्ड टूर्स पर आप प्रसिद्ध अस्सी घाट पर वाराणसी की सुबह की शांति का अनुभव कर सकते हैं। वाराणसी की हर चीज की तरह, अस्सी घाट के साथ एक बहुत ही दिलचस्प पौराणिक कहानी जुड़ी हुई है, वह कहानी यह है कि देवी दुर्गा ने शुंभ और निशुंभ राक्षस का वध करने के बाद अपनी तलवार (खड्ग) को जिस स्थान पर फेंका, वहाँ अस्सी नदी की उत्पत्ति हुई जिसके तट पर यह घाट स्थित है। अस्सी घाट सुबह-ए-बनारस कार्यक्रम का भी स्थल है जहाँ सुबह गंगा नदी की आरती की जाती है।

अस्सी घाट के अलावा वाराणसी में मुख्य घाट दशाश्वमेध घाट है - यह घाट भगवान ब्रह्मा (सृष्टि रचयिता) ने भगवान शिव (सृष्टि संहारक) के लिए बनाया था और दस अश्वों की बलि देकर एक यज्ञ किया था। यह घाट यकीनन सबसे शानदार घाट है और गंगा की संध्याकालीन जीवंत आरती का स्थल है। मणिकर्णिका घाट और बाजीराव पेशवा घाट भी लोकप्रिय हैं। यहां पर ये बताना भी ज़रूरी है कि इनमें से कई घाटों का पुनर्निर्माण 18वीं शताब्दी में मराठों द्वारा किया गया था।

बनारस, काशी, वाराणसी जैसे कई नामों से मशहूर इस नगरी ने सदियों से दूर-दूर से लोगों को आकर्षित किया है। हिंदू धर्म में अपने ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के कारण वाराणसी को अक्सर काशी भी कहा जाता है। काशी नाम संस्कृत शब्द कश से बना है, जिसका अर्थ चमक या प्रदीप्ति है। यह नाम आध्यात्मिक प्रबोधन और ज्ञान के प्रतीक के रूप में इस नगरी का महत्व दर्शाता है। वाराणसी हमेशा से विद्या का केंद्र रहा है और मेरा अगला पड़ाव एशिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बी. एच. यू. या बनारस हिंदू विश्वविद्यालय था। कहा जाता है कि आयुर्वेद की उत्पत्ति वाराणसी में हुई थी और आयुर्वेद और योग के आचार्य महर्षि पतंजलि भी इस पवित्र नगरी वाराणसी से संबंध रखते थे। वाराणसी प्राचीन काल से ही अपने व्यापार और वाणिज्य, विशेष रूप से रेशम और सोने और चांदी के उत्कृष्ट जरीदार वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध है। मैंने अपने अगले पड़ाव में सुंदर बनारसी जरी और रेशमी साड़ियाँ बनाने वाले बुनकरों से मुलाकात की।

मैंने काशी विश्वनाथ मंदिर, काल भैरव मंदिर, देवी दुर्गा के मंदिर और कई अन्य मंदिरों के दर्शन भी किए। लेकिन इस दौरान मुझे इस बात का एहसास हुआ कि वाराणसी खान-पान के शौकीन लोगों को भी आकर्षित करने वाला एक मज़ेदार शहर है, जो सुबह से लेकर रात तक पूड़ी भाजी, समोसा, कचौरी, चाट, आदि सहित सुस्वादिष्ट व्यंजनों की पेशकश करता रहता है!

अगले दिन मैं सारनाथ पहुंची। ये वो जगह है जहाँ भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया था। वाराणसी से सिर्फ 10 कि.मी. दूर स्थित सारनाथ हिंदू पुनर्जागरण का प्रतीक रहा है। यहाँ सदियों से ज्ञान, दर्शन, संस्कृति, भक्ति, भारतीय कला और शिल्प फलते फूलते रहे हैं। वाराणसी जैन धर्मावलंबियों का भी एक तीर्थ स्थल है क्योंकि यह तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की जन्मस्थली माना जाता है। वाराणसी में वैष्णववाद और शैववाद का सह-अस्तित्व रहा है। शाम को जब मैं हाथ में गरम झागदार कॉफी का एक कप लेकर दशाश्वमेध घाट पर बैठी थी, तो मुझे पूरा विश्वास हो चला था कि वाराणसी मेें सभी के लिए कुछ न कुछ है।

हाल ही में, मैंने एक खूबसूरत हिंदी गाना सुना, जिसमें गीतकार शकील आजमी ने एक युवा के प्रेम की तुलना वाराणसी से की है और मुझे लगता है कि इन शब्दों में वाराणसी का सार बहुत खूबसूरती से समाया है! यह गाना इस प्रकार है :

तू बन जा गली बनारस की

मैं शाम तलक भटकूँ तुझमें

तेरी बातें चटपटी चाट सी हैं

तेरी आँखें गंगा घाट सी हैं

मैं घाट किनारे सो जाऊँ

फिर सुबह सुबह जागूँ तुझमें...

यह गाना अपने आप में ही वाराणसी के लिए एक पर्यटक गाइड की तरह है! मैंने मन में तय कर रखा है कि मैं वारणसी फिर जाऊंगी, बार-बार जाऊंगी; तो आप कब जा रहे हैं?

February 17, 2024

Author

Sunila Patil
Sunila Patil

Sunila Patil, the founder and Chief Product Officer at Veena World, holds a master's degree in physiotherapy. She proudly served as India's first and only Aussie Specialist Ambassador, bringing her extensive expertise to the realm of travel. With a remarkable journey, she has explored all seven continents, including Antarctica, spanning over 80 countries. Here's sharing the best moments from her extensive travels. Through her insightful writing, she gives readers a fascinating look into her experiences.

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