Published in the Saturday Navbharat Times - Page No. 3 on 20 January, 2024
यदि आपको २४०० कि.मी. पैदल चलकर तय करने हों तो ५०० घंटे का समय लगता है। हरियाणा के कुरुक्षेत्र और तमिलनाडु के महाबलीपुरम के बीच इतनी ही दूरी है। वैसे तो महाभारत कुरुक्षेत्र में घटित हुआ था, लेकिन मैं यह देखकर चकित थी कि महाभारत का एक प्रसंग दक्षिण भारत के महाबलीपुरम में चट्टान पर बड़ी ही कुशलता से उत्कीर्णित किया गया है । अपनी बेटी सारा को मैं साथ में ले गई थी। हम चेन्नई से पॉन्डिचेरी की यात्रा पर थे और महाबलीपुरम का पड़ाव हमारे लिए एक बेहतरीन ब्रेक था। हमारा गाइड हमें महाबलीपुरम के स्मारकों का दर्शन कराता जा रहा था और यहाँ महाभारत की कहानी चट्टानों पर उत्कीर्णन द्वारा इतनी सुंदरता और बारीकी से चित्रित की गई थी जिसकी प्रशंसा के लिए हमारे पास शब्द कम पड़ रहे थे। अर्जुन की तपस्या को प्रदर्शित करनेवाले एक सुंदर स्मारक के सामने जब हम खड़े थे तब सारा ने कहा कि यदि हम इतिहास की पुस्तकों को रटने के बजाय सीखने की दृष्टि से केवल यात्रा करें तो इतिहास का अध्ययन और स्मरण करना बहुत ही आसान हो जाएगा। मैंने उसकी बात को स्वीकार किया और हमारे बीच सहमति हुई कि पर्यटन एक श्रेष्ठ शिक्षक है जो न केवल इतिहास के दर्शन कराता है बल्कि उस स्थान की भौगोलिक परिस्थितियों, संस्कृति, व्यंजनों और परंपराओं से भी अवगत कराता है।
भारत में पर्यटन की बात आती है तो हमारे पास अनगिनत विकल्प होते हैं। यहाँ अनेक स्मारकों से जुड़ी कई गाथाएँ, कहानियाँ, किंवदंतियां और इतिहास के प्रसंग जुड़े होते हैं। ये स्मारक केवल मौन इमारतें नहीं हैं बल्कि ये बीते युग की कहानी बयान करती हैं। स्थानीय गाइड अपनी कुशलता के साथ पत्थर की बेहतरीन रचनाओं को इतिहास के जीवंत अध्याय में रूपांतरित कर देते हैं। वीणा वर्ल्ड की टूर्स पर हम बड़े शान और गर्व से हमारे अतुलनीय भारत की इस विरासत के देशभर में कर्णाटक के हम्पी से लेकर राजस्थान के गढ़ों तक हमारे पर्यटकों को दर्शन कराते हैं ।
समुद्री तट पर बने मंदिर सदा से मुझे आकर्षित करते रहे हैं और महाबलीपुरम के अनेक तटीय मंदिरों या महाबलीपुरम के सात पगोडाज के बारे में मैंने बहुत कुछ सुन रखा था। एक ही मंदिर परिसर में इतनी सारी संस्कृतियों का प्रस्तुतिकरण देखना आश्चर्यजनक था। महाबलीपुरम या मामल्लपुरम कोरोमंडल तट पर स्थित है और यह बीते दिनों में एक व्यापारिक बंदरगाह हुआ करता था। मामल्लपुरम नाम मामल्लन या ’महान योद्धा’ से पड़ा है। यही पदवी थी जिससे पल्लव राजा नरसिंहवर्मन प्रथम को जाना जाता है जिन्होंने ७वीं शताब्दि में महाबलीपुरम को बसाया था। पल्लव राजाओं ने ३री शताब्दि से लेकर ९वीं शताब्दि तक पल्लव साम्राज्य की राजधानी कांचीपुरम से महाबलीपुरम पर शासन चलाया था और श्रीलंका तथा दक्षिण पूर्व एशिया तक व्यापार और राजनयिक संबंधों को संचालित करने के लिए यहां के बंदरगाह का उपयोग किया था। आप जब पॉन्डिचेरी की यात्रा पर जाते हैं तब वीणा वर्ल्ड ने इसे अपने टूर प्रोग्राम में शामिल किया है। पल्लव साम्राज्य के दौरान दक्षिण भारत की संस्कृति प्रगति के अपने उच्चतम शिखर पर थी।
मूलत: मामल्लपुरम में ४०० से अधिक स्मारक थे। किंतु वर्तमान में केवल ४० स्मारकों का समूह ही टिक पाया है। इन स्मारकों की खूबसूरती ने न केवल संपूर्ण भारत का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है बल्कि सारी दुनिया इन्हें निहारने के लिए आती है। इसीलिए तो युनेस्को ने इसे दुनिया की विरासतों (विशेषकर यहां के गंगा का धरती पर अवतरण, पंच रथ और तटीय मंदिर यह तीन स्मारक) में स्थान दिया है।
मुझे यहां पर सूक्ष्मता से उकेरे गए एक स्मारक ने अत्यधिक आकर्षित किया जिसे अर्जुन की तपस्या के रूप में जाना जाता है, और ’गंगा के अवतरण’ के रूप में भी यह विख्यात है। कभी कभी इसे भगीरथ की तपस्या भी कहा जाता है। एक ही चट्टान पर विशालकाय पृष्ठभूमि में उकेरी गई यह रचना आश्चर्यकारी है। यह चट्टान ९६ फुट लंबी और ४३ फुट ऊँची है। आश्चर्य इस बात का हो रहा था कि आखिर पल्लवों के शिल्पकारों ने इतने विशाल स्मारक को एक ही चट्टान में इतनी कुशलता से किस तरह रचा होगा, जब कि मुझे इस विशाल स्मारक को एक ही फोटोग्राफ में शामिल करना कठिन लग रहा था। यदि आप फोटोग्राफी का शौक रखते हैं तो इन स्मारकों की तस्वीर लेने का श्रेष्ठ तरीका यही है कि आप भीड़ पहुंचने से पहले ही जल्दी से यहां पहुंच जाएं या फिर धैर्य रखें और इंतज़ार करें कि कब इस स्मारक के सामने की भीड़ छंटती है। आज कल, अधिकांश कैमरों में वाइड-एंगल एड्जस्टमेंट की खूबी आती है जिससे अपनी पसंदीदा यादों को संपूर्णता से फोटो में समेटना आसान हो जाता है।
अर्जुन की तपस्या एक चट्टान पर दो भागों में बनी है और ये स्थानीय लोकगाथा से दो कहानियों को चित्रित करती है। एक कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद ईश्वर की गहन तपस्या में खड़े अर्जुन को चित्रित करती है जो धर्म के अनुपालन को दर्शाता और अर्जुन की आध्यात्मिक यात्रा का प्रतिबिंब भी है। दूसरी कहानी भगीरथ द्वारा ईश्वर की आराधना करके गंगाजी को पृथ्वी पर लाने की प्रार्थना के बारे में है जो चट्टान में पड़ी फांक द्वारा दर्शाई गई है। मुझे आश्रम के दृश्य ने अत्यंत मोहित किया जिसमें हिरण और सिंह के सह-अस्तित्व के माध्यम से संसार के समस्त प्राणियों को सह-अस्तित्व की भावना से रहने के लिए प्रेरित किया गया है और जब आप महाबलीपुरम जाएँ तो इस स्मारक के तल में बनी हिरणों की जोडी का चित्र देखने का प्रयास करें। यह हम में से अधिकांश लोगों को देखा देखा सा प्रतीत होगा क्योंकि हमने इसे अक्सर अपने पुराने दस रुपए की नोटों पर छपा देखा है।
इसके पश्चात् हम अपने अगले आकर्षण की ओर बढ़े जहां पर हमने पंच रथों का दर्शन किया। ये रथ पांच एकल चट्टानों पर बने मंदिर हैं जो पुख्ता ग्रेनाइट की चट्टान को काटकर बनाए गए हैं। इन पंच रथों को पांडवों-अर्जुन, भीम, युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव तथा द्रौपदी के नाम दिए गए हैं। उल्लेखनीय बात ये है कि ये मंदिर उसी पागोडा जैसे आकार में बने हैं जो बौद्ध मठों और मंदिरों के आकार से मेल खाते हैं।
महाबलीपुरम का पल्लव साम्राज्य के सागरी संबंधों के माध्यम से बौद्ध धर्म और चीन के साथ संबंध है। ऐसा कहा जाता है कि चीनी बौद्ध यात्री ह्वेन सांग पल्लव साम्राज्य के दौरान महाबलीपुरम आया था। यूरोपीय अन्वेषकों ने महाबलीपुरम के सात पगोडाज का वर्णन किया है और हमारा अगला पड़ाव इन्हीं में से एक था। द्रविडी स्थापत्य शैली में ग्रेनाइट की चट्टान से निर्मित तटीय मंदिर गाथाओं के अनुसार सात पगोडाज का हिस्सा बताया जाता है। ५० फुट के वर्गाकार आधार पर निर्मित, ५ मंजिला पिरामिडल मंदिर में तीन देवालय हैं जिसमें से दो भगवान शिव को समर्पित हैं और एक भगवान विष्णु को समर्पित किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि तटीय मंदिर समुद्र में परिवहन करनेवाले जहाजों के लिए एक दिशादर्शक की भूमिका निभाता था।
’कृष्णाज बटर बॉल’ नाम से सुविख्यात २५० टन की चट्टान भी यहां पर आकर्षण का केंद्र है जो गुरुत्वाकर्षण के नियमों के विपरीत तन कर खड़ी है। यह एक विशाल २० फुट ऊँची और ५ मीटर चौडी चट्टान है जो एक पहाडी की ढलान पर खड़ी है, जो ४ फुट से भी कम के आधार पर टिकी है। यहां पर स्थित खूबसूरत इमारतों का अधिक से अधिक दर्शन करने के बाद, अब हम महाबलीपुरम के खूबसूरत समुद्री तटों पर घूमने के लिए तैयार थे, जिन्हें सूर्य की किरणों से अद्भुत सौंदर्य प्राप्त होता है।
२०१९ में हुए भारत-चीन सम्मेलन में, हमारे आदरणीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीजी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किए गए मामल्लपुरम के स्मारकों के गाइडेड टूर पर ले गए थे। अपने प्राचीन चट्टानों, रहस्यों और समयातीत गाथाओं के साथ महाबलीपुरम ने हमारी आत्मा पर एक अमिट छाप छोड़ी है। हमें तो कुरुक्षेत्र से महाबलीपुरम जितना अंतर तय नहीं करना पड़ा फिर भी स्मारकों को देखने के लिए यहां पर आपको चलना पड़ेगा इसीलिए जब भी आप महाबलीपुरम की यात्रा पर जाएँ तो अत्यंत आरामदायक जूते पहनना न भूलें!
- पर्यटन क्षेत्र में अपने उल्लेखनीय करियर में सुनिला पाटिल ने अंटार्कटिका सहित सातों कॉन्टिनेंट्स में ८० से अधिक देशों में ट्रॅव्हल किया है। इन्हें भारत की पहली ऑसी स्पेशलिस्ट यानी ऑस्ट्रेलिया की अॅम्बॅसेडर होने का सम्मान हासिल है।
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